Sunday 3 December 2017

रेखाजी ने दोहराए रूमानी लमहें!

एवरग्रीन 'ख़ूबसूरत' रेखाजी!

कल 'सोनी टीवी' के 'सुपर डांसर' प्रोग्राम में एवरग्रीन 'ख़ूबसूरत' रेखाजी ने अपने उन रूमानी गानों को पार्टीसिपेंटस के साथ याद किया..जो उन्होंने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन और विनोद मेहरा के साथ परदे पर साकार किए थे..और "उनके वह रूमानी जज़्बात" फिरसे उजागर हो गए!
"परदेसियां.." ('मि. नटवरलाल') गाने में रेखा और अमिताभ बच्चन!


इसमें "परदेसियां ये सच है पिया सब कहते है मैंने तुझको दिल दे दिया.." ('मि. नटवरलाल') और "सलाम-ए-इश्क़ मेरी जान.." ('मुकद्दर का सिकंदर') जैसे अमिताभ बच्चन के साथ वाले जोश भरे गाने थे..और "आप की आँखों में कुछ महके हुए से राज है.." ('घर') ऐसे विनोद मेहरा के साथ वाले नाजुक पल!


"आप की आँखों में.." ('घर') गाने में रेखा और विनोद मेहरा!


'सिलसिला' का "रंग बरसे.." तो उन्होंने बिग-बी के अंदाज में सबके साथ पेश किया और कुछ संवाद भी उसी ढंग में किए..बिच में स्टाइल भी वहीँ! यह सब देख कर वहां बैठे परीक्षक अनुराग बासु, शिल्पा शेट्टी और गीता कपूर चौंक गए! आज शाम को इसका सेकंड पार्ट हुआ!
'सोनी टीवी' के 'सुपर डांसर' प्रोग्राम में रेखा और शिल्पा शेट्टी!




टीवी के यह दृश्य देखते हुए..मै भी कॉलेज के दिनों की उनकी फिल्मों की दीवानगी याद करता रहा!


- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Tuesday 28 November 2017

डॉ. हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन"!

'मधुशाला' और 'अग्निपथ' प्रसिद्ध डॉ. बच्चन!


हिंदी भाषा के ख्यातनाम कवि तथा साहित्यकार डॉ. हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन"जी का ११० वा जनमदिन संपन्न हुआ!

नव-कविता तथा 'हालावाद' के प्रवर्तक रहे बच्चन साहब की सबसे प्रसिद्ध काव्यकृती 'मधुशाला' है। उनके पुत्र प्रख्यात अभिनेता अमिताभ बच्चन ने 'सिलसिला' (१९८१) फिल्म में उनका गाया हुआ गीत "रंग बरसे..'' काफी मशहूर हुआ! उनकी 'अग्निपथ' कविता भी अमिताभ बच्चन अभिनीत फिल्म 'अग्निपथ' (१९९०) में ली गयी थी!
 डॉ. हरिवंश राय श्रीवास्तव "बच्चन" और पुत्र-अभिनेता अमिताभ बच्चन!

काव्यकृती 'दो चट्टाने' के लिए उन्हे 'साहित्य अकादमी पुरस्कार' मिला..तथा 'पद्मभूषण' से उन्हे सम्मानित किया गया!

उन्हें विनम्र अभिवादन!!

- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Friday 24 November 2017

''फुल हसीं के तुमने मुखपर..डाल दिये तो मैं बलिहारी..!''

फ़िल्म 'नीरजा' (२०१६) में बेहतरीन अदाकारी से दिल छू लेने वाली और सम्मानित हुई 'खूबसुरत' सोनम कपूर का यह लाजवाब ''हसता हुआ नूरानी चेहरा'' देखकर यह काव्यपंक्तियां याद आयी!

- मनोज कुलकर्णी 

('चित्रसृष्टी'. पुणे)

Friday 17 November 2017

'इफ्फी':

'दायरा' का वाकया फिरसे होगा?

 
अब जब मराठी फिल्म 'न्यूड' और मलयालम फिल्म 'एस दुर्गा' इस बार के हमारे '४८ वे भारतीय आंतरराष्ट्रीय फिल्म समारोह' ('इफ्फी', गोवा) के 'इंडियन पैनोरमा' से निकालने की खबर है..तब मुझे त्रिवेन्द्रम में १९९७ में हुए 'इफ्फी' का वाकया याद आया!


त्रिवेन्द्रम के उस 'इफ्फी',१९९७ के 'इंडियन पैनोरमा' में अमोल पालेकर की फिल्म 'दायरा' समाविष्ट नहीं की गयी थी; तो उन्होंने वहां अलग थिएटर में उसका पैरलल स्क्रीनिंग किया था..और हमने वहां जा कर वह देखी थी! इसके गीत लिखे गुलज़ार जी भी वहां आए थे!

स्त्री और समाज को अलग दायरे में परखने वाली इस फिल्म में सोनाली कुलकर्णी और निर्मल पांडये की अलग किस्म की वैशिष्ट्यपूर्ण भूमिकाएं थी! बाद में यह फिल्म कहाँ रिलीज़ हुई पता नहीं!

 
- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Wednesday 15 November 2017

ख़ूबसूरत नज़ाकत..श्यामा!

 

अलविदा कर गयी...

गुज़रे ज़माने की हसीन श्यामा!



- मनोज कुलकर्णी
फ़िल्म 'आर पार' (१९५४) में गुरुदत्त और शोख़ हसीन..श्यामा!



"सुन सुन सुन सुन ज़ालीमा..
प्यार हमको तुमसे हो गया.."

प्रतिभाशाली निर्देशक-अभिनेता गुरुदत्त अपनी फ़िल्म 'आर पार' (१९५४) में जिसे यह गुज़ारिश कर रहे थे वह थी उस ज़माने की शोख़ हसीन अदाकारा..श्यामा!

उम्र ८२ पर यह बुजुर्ग अभिनेत्री अब इस दुनिया से चली गयी!


लाहौर में जन्मीं उनका असल में नाम था ख़ुर्शीद अख़्तर..लेकिन फ़िल्मकार विजय भट ने उन्हें परदे के लिए नाम दिया..श्यामा! १९४५ में 'ज़ीनत' फ़िल्म के "आहे न भरे.." इस कव्वाली में वह पहली बार परदे पर आयी!..बाद में 'शबनम' (१९४९) जैसी फिल्मों में उन्होंने काम किया!
फ़िल्म 'शारदा' (१९५७) में श्यामा और राज कपूर!

१९५१ में उन्होंने त्रिकोणीय प्रेम कथा वाली दो फिल्मों में काम किया..जिसमें एक थी दिलीपकुमार और मधुबाला की 'तराना' तथा दूसरी थी देव आनंद और निम्मी की 'सज़ा'! फिर १९५३ में 'श्यामा' नाम की फ़िल्म में वह नायिका बनी..फिर इसी नाम से वह मशहूर हुई!


'बरसात की रात' (१९६०) में अपने गहरे अंदाज़ में..श्यामा!


वह गुरुदत्तजी की 'आर पार' (१९५४) फ़िल्म ही थी, जिससे श्यामा को प्रमुख नायिका की हैसियत से बहोत शोहरत हासिल हुई! इसके "येल्लो मैं.." गाने में रूमानी अंदाज़ दिखानेवाली श्यामा ने बाद में मीना कुमारी की प्रमुख भूमिका वाली 'शारदा' (१९५७) जैसी फिल्मों में अपना अच्छा अभिनय दर्शाया और 'फ़िल्मफेअर' का पुरस्कार लिया!
श्यामा अपने शौहर फली मिस्त्री के साथ!

फ़िल्म 'दो बहेन' (१९५९) में तो उन्होंने दो भिन्न भूमिकाएं अदा की थी! फिर 'मलिका-ए-हुस्न' मधुबाला अभिनीत 'बरसात की रात' (१९६०) जैसी फिल्मों में उन्होंने अपने गहरे अंदाज़ दिखाए!

फ़िल्मी दुनिया से दूर..श्यामा!
दरमियान सिनेमैटोग्राफर फली मिस्त्रीजी से उनका निक़ाह हुआ..और फिर 'शादी के बाद' (१९७२) जैसी फिल्मों में चरित्र अभिनेत्री के किरदार करना उन्होंने पसंद किया..'पायल की झंकार' (१९८०) में वह आखिरी बार परदे पर नज़र आयी! क़रीबन २०० फिल्में करके कुछ साल बाद वह फ़िल्मी दुनिया से दूर हो गयी थी!

होमी वाडिया की फ़िल्म 'झबक' (१९६१) में श्यामा!
अब जब वह इस दुनिया से रुख़सत हुई है..तो लगता है यही (फ़िल्म 'झबक' का) गाना वह हमें कह गई हो..
"तेरी दुनिया से दूर..
चले होके मज़बूर..
हमें याद रखना.."

हम इस शोख़ खूबसूरत अदाकारा को कभी नहीं भूलेंगे!
उनको मेरी सुमनांजली!!

- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे, इंडिया)

Tuesday 14 November 2017

"नन्हे मुन्ने बच्चे तेरी मुट्ठी में क्या है?
*मुट्ठी में है तक़दीर हमारी...
हम ने क़िस्मत को बस में किया है!"

'आर के' की फ़िल्म 'बूट पॉलीश' (१९५४) में रतनकुमार और बेबी नाज़!

आज के 'बाल दिन' पर..हमारे भारतीय सिनेमा के इतिहास का यह पन्ना आज फिर से झाँक लिया..जो अब भी समकालीन लगा!

- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Saturday 11 November 2017

सिनेमा के सुवर्ण युग की अपनी हसीन ख़ूबसूरत अदाकारा..माला सिन्हा जी को ८१ वी सालगिरह की मुबारक़बाद!

- मनोज कुलकर्णी 
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Friday 10 November 2017

प्रिंस का पद्मिनी ने लिया था किस!

ब्रिटन के प्रिंस चार्लस की इस बार की हमारे भारत यात्रा की ख़बर देखते ही..मुझे १९८० के दशक में उनका दौरा और बम्बई में बॉलीवुड का किया चक्कर भी याद आया!
इसमें उन्होंने श्रेष्ठ फ़िल्मकार वी. शांताराम के 'राजकमल' स्टुडिओ को भेट दी थी..तब एक अजब वाकया हुआ..वहां फिल्म 'झंझार' की शूटींग कर रही अभिनेत्री पद्मिनी कोल्हापुरे ने पाश्चात्य तरीके से चुम कर प्रिंस का स्वागत किया था!
यह देखकर वहां मौज़ूद शांतारामबापू और खुद प्रिंस भी कुछ देर चौंक गए थे!!

- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Monday 6 November 2017

संजीव कुमार जी की याद!


हमारे अभिनयसम्राट दिलीपकुमार के सामने अभिनयक्षमता से खड़े रह सकते थे ऐसे एक अभिनेता थे..संजीव कुमार!
'विधाता' (१९८२) में दिलीप कुमार और संजीवकुमार!

दोनों ने केवल दो फिल्मों में साथ में काम किया..'संघर्ष' (१९६८) और 'विधाता' (१९८२). संजीवकुमार के मूक अभिनय से प्रशंसित 'कोशिश' (१९७२) में दिलीप कुमार मेहमान कलाकार थे! 
'नया दिन नयी रात' (१९७४) फ़िल्म में संजीव कुमारजी ने (नौ रस के) नौ किरदार बख़ूबी साकार किये थे!

हालाकि दोनों में अच्छा तालमेल था!

आज संजीव कुमार जी के ३२ वे स्मृतिदिन पर यह विशेषता याद आयी!


उन्हें मेरी सुमनांजली!!


- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे) 

Thursday 2 November 2017

"हर घड़ी बदल रही है रूप ज़िंदगी
छाँव है कभी, कभी है धूप ज़िंदगी
हर पल यहाँ जी भर जियो...."


सालगिरह मुबारक़ बॉलीवुड 'बादशाह'
 शाह रुख़ खान!

- मनोज कुलकर्णी 

('चित्रसृष्टी', पुणे)

Tuesday 24 October 2017

"ऐ मेरे प्यारे वतन.."
'क़ाबुलीवाला' फ़िल्म का मन्ना डे जी ने गाया यह गाना उनके पसंदीदा गानों में से एक!
उनको ४ थे स्मृतिदिन पर सुमनांजली!

- मनोज कुलकर्णी 
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Monday 23 October 2017


"नीले गगन के तले.."
 
भारतीय सिनेमा का ख़ूबसूरत सपना..विमी!
चालीस साल गुज़रे इसे टूट कर!!


सुमनांजली!!!

 - मनोज कुलकर्णी 
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Sunday 22 October 2017

रूमानी फ़िल्मकार 

यश चोपड़ा! 

- मनोज कुलकर्णी  

 'किंग ऑफ़ रोमैंटिक बॉलीवुड' ऐसी शोहरत जिन्होंने हासिल की..वह फिल्म निर्माता-निर्देशक यश चोपड़ा जी अपना रुपहला परदा छोड़ कर चले गए..इसे अब पाँच साल हुए!





{यशजी की आखरी फिल्म 'जब तक है जान' (२०१२) में
अनुष्का शर्मा, शाहरुख़ खान और कैटरीना क़ैफ़!}

हालांकि यशजी ने सभी महत्वपूर्ण जॉनर की फिल्में बनायी..जैसी की करिअर की शुरुआत में बड़े भाई मशहूर फ़िल्मकार बी. आर. चोपड़ा साहब की निर्मिती में उन्होंने निर्देशित की हुई सोशलस 'धुल का फूल' (१९५९) यह राजेंद्र कुमार और माला सिन्हा अभिनीत विवाह पूर्व संतान विषय पर और 'धर्मपुत्र' (१९६१) यह शशी कपूर अभिनीत पार्टीशन तथा मूलतत्ववाद पर प्रकाशझोत डालनेवाली!

यशजी निर्देशित पहली 'धुल का फूल' (१९५९) के उस गाने में मनमोहन कृष्ण !

"तू हिन्दु बनेगा ना मुसलमान बनेगा
इंसान की औलाद है इंसान बनेगा.."

साहिरजी ने लिखा यह उनके 'धूल का फूल' का गाना धर्मनिरपेक्षता की बड़ी सीख़ देता है! इसके बाद 'वक़्त' (१९६५) यह पहली मल्टी स्टारर फ़िल्म यशजी ने निर्देशित की। बलराज साहनी, अचला सचदेव, सुनिल दत्त, साधना, शशी कपूर और शर्मिला टैगोर जैसे जाने माने कलाकार इसमें थे। 'लॉस्ट एंड फाउंड' का प्लॉट रही इस हिट फिल्म में राज कुमार के "जिनके घर शीशे के होते है वो दूसरों पर पत्थर नहीं फ़ेका करते!" ऐसे डायलॉग और अदाकारी दर्शकों को बेहद पसंद आयी! बाद में 'इत्तेफाक' (१९६९) यह बगैर गाने की थ्रिलर उन्होंने बनायी जिसमें राजेश खन्ना और नंदा की वेधक भूमिकांए थी।

वक़्त' (१९६५) में राज कुमार, सुनील दत्त, साधना, शर्मिला टैगोर और शशी कपूर!

१९७१ में उन्होंने खुद की 'यशराज फ़िल्म्स' यह निर्मिती संस्था शुरू की और सही मायने में यही से उनका रोमैंटिक फिल्मों का दौर शुरू हुआ! इसके द्वारा पहली रोमैंटिक फिल्म उन्होंने सादर की 'दाग' (१९७३) जो की बहुपत्नीत्व को भी स्पर्श कर गई..इस त्रिकोणीय प्रेमकथा में राजेश खन्ना के साथ राखी और शर्मिला टैगोर ने ख़ूब रूमानी रंग भरे! इस फिल्म की सफलता के बाद तो उन्होंने 'कभी कभी' (१९७६) यह मल्टी स्टारर रोमैंटिक फ़िल्म बनायी; जिसमें वहिदा रहमान, शशी कपूर, ऋषि कपूर, नीतू सिंह और राखी के साथ अमिताभ बच्चन शायराना अंदाज़ में था!

यशजी निर्मित-निर्देशित 'दाग' (१९७३) में राखी, राजेश खन्ना और शर्मिला टैगोर।

वैसे यशजी ने सुपरस्टार अमिताभ बच्चन की फिल्म कैरियर की महत्वपूर्ण फिल्में बनाना १९७५ में 'दीवार' से ही शुरू किया था...इसमें 'त्रिशुल' (१९७८) और 'काला पत्थर' (१९७९) ऐसी फिल्मों में अन्याय-अत्याचार के विरुद्ध आवाज और हाथ उठानेवाला यह एंग्री यंग मैन युवा वर्ग पर असर करके बहोत लोकप्रिय हुआ! इसके बाद १९८१ में उन्होंने 'सिलसिला' यह ऐसी त्रिकोणीय प्रेम की फिल्म बनायी जो वास्तव में चर्चित ऐसे किरदार..तीन कलाकारों को एक साथ परदे पर ले आयी..अमिताभ बच्चन, जया भादुड़ी-बच्चन और रेखा!
'सिलसिला' ( १९८१) में  रेखा, अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी-बच्चन!


अभिनय सम्राट दिलीप कुमार को एक और अलग ऊंचाई पर लेने वाला किरदार यशजी ने दिया 'मशाल' (१९८४) फ़िल्म मे..जो वसंत कानेटकर लिखित मराठी नाटक 'अश्रुंची झाली फुले' पर आधारित थी। इस फ़िल्म से अनिल कपूर भी उभर आए!
यशजी की पसंदीदा 'लमहें' (१९९१) में श्रीदेवी और अनिल कपूर!






 त्रिकोणीय प्रेम कथा वैसे यशजी का एक पसंदीदा विषय रहा ही था.. इसमें १९८९ में आयी उनकी हिट फिल्म 'चॉँदनी' (१९८९) श्रीदेवी ने विनोद खन्ना और ऋषि कपूर के साथ बखूबी साकार की। इससे खूबसूरत (परदेशी) लोकेशन्स और संगीत (शिव-हरी जैसे) के साथ यशजी का 'रोमैंटिक म्यूजिकल' का अपना जॉनर विकसित हुआ! इसमें १९९१ में श्रीदेवी को अनिल कपूर के साथ दोहरे किरदारों में पेश करनेवाली अनोखी रूमानी फिल्म उन्होंने बनायी..'लमहें' जो उनकी खुद की एक पसंदीदा फ़िल्म रही!
"जादू तेरी नज़र.."..'डर' (१९९३) में जूही चावला!


फिर इस सदी के सुपरस्टार शाहरुख़ खान को लेकर यशजी अपनी हिट रोमैंटिक म्यूजिकल फिल्में बनाते गए..इसमें 'डर' (१९९३) में जूही चावला और 'दिल तो पागल है' (१९९७) में करिश्मा कपूर के साथ माधुरी दीक्षित की खूबसूरती निखर आई! यह फिल्में "जादू तेरी नज़र.." का रूमानी अहसास नई पीढ़ी के आशिकों को दे गई और "ढोलना.." के धुन पर वह डोलने लगे!



'दिल तो पागल है' (१९९७) में माधुरी दीक्षित, करिश्मा कपूर और शाहरुख़ खान!

२००४ में फिर यशजी ने पार्टीशन के पृष्ठभूमी पर फ़िल्म बनायी 'वीर ज़ारा' जिसके लिए उन्होंने म्यूजिकल एक्सपेरिमेंट किया..गुज़रे हुए संगीतकार मदनमोहनजी की धुनें इस्तिमाल की..इसके "तेरे लिए.." गाने पर शाहरुख़ खान और प्रीति ज़िंटा की लाज़वाब अदाकारी देखने को मिली। इसके बाद २०१२ में 'जब तक है जान' यह आखरी फ़िल्म बनाकर वह इस दुनिया से चल बसे!
'वीर ज़ारा' (२००४) में शाहरुख़ खान, प्रीति ज़िंटा और रानी मुख़र्जी!



अपने पांच दशक के फ़िल्म कैरियर में यशजी ने लगभग पचास फ़िल्मे बनायी। उनको काफ़ी सम्मान मिले..इसमें छह नेशनल और ग्यारह फ़िल्मफेअर अवार्ड्स शामिल है। इसके साथ ही उनको भारत सरकार की तरफ से 'पद्मभूषण' और हमारे सिनेमा क्षेत्र का सर्वोच्च 'दादासाहेब फालके पुरस्कार' से सम्मानित किया गया।

यशजी से मिलने के कई 'लमहें' आज मेरे आँखों के सामने है!..वाकई में रूमानी शक्सियत थे वह!

उनको मेरी यह सुमनांजली!!


- मनोज कुलकर्णी
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Saturday 21 October 2017

"याssहूँss.."
शायद आसमाँ में भी यह गूँज उठी होंगी..
क्योंकी हमारे रिबेल स्टार शम्मी कपूरजी का आज ८६ वा जनमदिन है!


उन्हीं के ('तिसरी मंज़िल' के) गाने से उन्हें पुकारने को मन कर रहां है "आsजा आsजा.."


- मनोज कुलकर्णी 
('चित्रसृष्टी', पुणे)

Wednesday 18 October 2017

झगमग उठें दिवाली के रंगीन दिये 
लाए खुशी, प्यार सबके जिंदगी में.! 

 - मनोज 'मानस रूमानी'

Friday 13 October 2017

भारतीय सिनेमा की ग्रेटा गार्बो..'ख़ूबसूरत' रेखा! 

- मनोज कुलकर्णी



साठ साल से ज्यादा उम्र और फिल्म इंडस्ट्री में पचास साल का लम्बा सफर पार करने के बाद भी..जवाँ ख़ूबसूरत दिखनेवाली हमारे भारतीय सिनेमा की लाज़वाब अभिनेत्री है रेखाजी!

गुजरे ज़माने के तमिल अभिनेता जेमिनी गणेशन और तेलुगु अभिनेत्री पुष्पवल्ली की कन्या रेखा का असली नाम था..भानुरेखा! पिता का दूर रहेना और हालातों की वजह से उसने सिर्फ १२ साल की उम्र में स्कूल छोड़ कर सिनेमा की तरफ रुख कर लिया। पहली बार १९६६ में तेलुगु फिल्म 'रंगुला रत्नम' में वह बालकलाकार के रूप में परदे पर दिखाई दी!

तेलुगु फिल्म 'रंगुला रत्नम' (१९६६) में बालकलाकार ..और षोडश रेखा!


इसके बाद १९६९ में बतौर नायिका वह आयी हिट कन्नड़ा फ़िल्म 'ऑपरेशन जैकपॉट नल्ली सी.आय.डी. ९९९' में..जिसके नायक थे वहां के सुपरस्टार राजकुमार!
कन्नड़ा 'ऑपरेशन जैकपॉट नल्ली सी.आय.डी. ९९९' (१९६९) में रेखा और राजकुमार!



इसी दौरान उसने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा 'अंजाना सफर' से..इसमें नायक बिश्वजीत के साथ उसका फ़र्जी चुंबन दृश्य से कंट्रोवर्सी खड़ी हुई..और दस साल के बाद १९७९ में 'दो शिकारी' नाम से यह फ़िल्म प्रदर्शित हो गई!
हिंदी 'अंजाना सफर' ('दो शिकारी'/१९७९) में बिश्वजीत और रेखा!





यहाँ शुरुआत के दिनों में उसको हिंदी भाषा बोलने जैसी समस्यांओ से गुजरना पड़ा..गोल मटोल टोमबोइश थी वह! सही माने में उसका हिंदी सिनेमा में डेब्यू हुआ मोहन सैगल की फ़िल्म 'सावन भादो' (१९७०) से..इसके नायक नविन निश्चल का उसके साथ "सुन सुन सुन ओ गुलाबी कली.." इस रफ़ीजी के गाए रूमानी गाने से इश्क़ लड़ाना दर्शकों को भा गया..और इस हिट फ़िल्म से रेखा स्टार हो गई!
'सावन भादो' (१९७०) में नविन निश्चल और रेखा!


फिर भी एक अभिनेत्री के लिए जैसे चाहिए वैसे क़िरदार उसके पास तुरंत नहीं आए।..रणधीर कपूर के साथ 'रामपुर का लक्ष्मण', धर्मेंद्र के साथ 'कहानी किस्मत की' (१९७२) और सुनिल दत्त के साथ 'प्राण जाए पर वचन ना जाए' (१९७४) और फ़िरोज़ खान के साथ 'धर्मात्मा' (१९७५) ऐसी नायकों के इर्द-गिर्द घूमनेवाली फिल्मों में उसका अस्तित्व सिर्फ़ 'लुक' था!

  'दो अंजाने' (१९७६) में अमिताभ बच्चन और रेखा!
बाद में रेखा ने अपनी सेहत, अपीयरेंस और अभिनय पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया। इस दौरान उनके सामने आया तब सुपरस्टार बनके छा गया अमिताभ बच्चन जिसके साथ उसको 'दो अंजाने' (१९७६) फ़िल्म में लिया गया..निहार रंजन गुप्ता की बांग्ला उपन्यास 'रात्रिर यात्री' पर आधारित दुलाल गुहा ने बनाई इस फिल्म में ग्लैमर की चकाचौंध दुनिया का रंग चढ़ गयी हीरोइन का वह मुश्किल किरदार उसने बख़ूबी पेश किया! इसी के साथ शुरू हुआ अमिताभ और रेखा इस हिट जोड़ी का 'सिलसिला'!

'माँग भरो सजाना' में रेखा और जितेंद्र!

फिर 'सावन भादो' में ग्लैमर से मशहूर करनेवाले मोहन सैगल ने ही उसे 'एक ही रास्ता' (१९७७) में अभिनय से परिपूर्ण स्त्री व्यक्ति'रेखा' में लाया..सामने शबाना आज़मी जैसी मंजी हुई अभिनेत्री थी और नायक था जितेंद्र जिसके साथ उसने बाद में कई अच्छी पारिवारिक फ़िल्में की...जैसी 'माँग भरो सजाना', 'जुदाई' (१९७९) और 'एक ही भूल' (१९८१).

'घर' (१९७८) में रेखा और विनोद मेहरा!

दरमियान उसने एक अच्छी सोशल फिल्म में काम किया 'घर' (१९७८)..नायक था विनोद मेहरा जिसके साथ वह काफी क्लोज हुई थी!..इसके गुलज़ार के "आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे.." गाने में दोनों की नजदीकियाँ नज़र आयी!

'खून पसीना' (१९७७) में अमिताभ बच्चन और रेखा!




लेकिन अमिताभ बच्चन-रेखा यही जोड़ी परदे पर हिट हुई और बहोत चर्चित भी रही! इसमें हृषिकेश मुख़र्जी की फिल्म 'आलाप' (१९७७) में इनके तरल भावनिक आविष्कार काफ़ी इंटेंस रहें! फिर 'खून पसीना' से अमिताभ के साथ का असर रेखा के स्टाईल में भी दिखाई देने लगा..बाद में 'ईमान धरम' और 'गंगा की सौगंध' (१९७८) इस भोजपुरी फिल्म से यह जोड़ी आम जनमानस पर छा गई!


'मुकद्दर का सिकंदर' (१९७८) में रेखा और अमिताभ बच्चन!
..और आयी प्रकाश महरा की हिट फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' जिसमे अमिताभ का किरदार जीवन में प्रतिकुल परिस्थिती से संघर्ष करके अन्याय विरुद्ध खड़ा रहनेवाला ऐसा ही था; लेकिन दो नायिकाओं का अलग स्थिती में साथ निभानेवाला (कुछ 'देवदास' की तरह ही) भी था..जिसमें कोठे पर "सलाम-ए-इश्क़.." गाकर इस सिकंदर पर जान निछावर करनेवाली जोहरा बनी रेखा की अदा लाज़वाब थी।..उन दोनों का ऐसाही अंदाज बाद में 'सुहाग' (१९७९) में भी दिखाई दिया। इस जोड़ी की लोकप्रियता इस कदर बढ़ी की 'मि. नटवरलाल' के गाने में रेखा ने कहाँ "परदेसियां ये सच है पिया सब कहेते है मैंने तुझको दिल दे दिया.." और उस पर अमिताभ ने कहाँ "लोगों को कहेने दो कहेते ही रहेने दो.."
'मि. नटवरलाल' (१९७९) के "परदेसियां.." गाने में रेखा और अमिताभ बच्चन!
१९८० में आयी फिल्म 'राम बलराम' के बाद..अमिताभ और रेखा की बढ़ती नजदिकियों के मद्देनज़र मशहूर फ़िल्मकार यश चोपड़ा ने उनको परदेपर सीधा जया भादुड़ी-बच्चन के सामने लाने का मुश्किल काम किया फिल्म 'सिलसिला' (१९८१) से! इसमें इन तीनों के भावोत्कट प्रसंग दर्शकों ने वास्तविकता के संदर्भ में देखे। इसके "ये कहाँ आ गए हम.." गाने में दोनों का रोमांटिसिज्म कमाल का था!
'सिलसिला' (१९८१) में रेखा, अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी-बच्चन!

दरमियान रेखा ने ऐसी कॉन्ट्रवर्सी से हटकर अपने एक्टिंग कैरियर पर ध्यान देना बेहतर समझा। इसका नतीजा हृषिकेश मुख़र्जी की फिल्म 'ख़ूबसूरत' (१९८०) में सामने आया था..इसमें "सुन सुन सुन दीदी.." गाकर स्कर्ट में डान्स करनेवाली नटखट और बिनधास्त रेखा ने बंधनों को तोड़ कर खुशी से जीने का सबक दिया!..उसका यह अंदाज़ स्कुल-कॉलेज के दिनों में बहोत प्यारा लगा था और वह हमारी फेवरेट हुई। इस फिल्म के लिए उसको 'फ़िल्मफ़ेअर' का 'बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड' भी मिला!
'ख़ूबसूरत' (१९८०) में रेखा!

फिर 'एग्रीमेंट' जैसी अलग फ़िल्में करते हुए उसने 'काली घटा' में दोहरी भूमिकाएं निभाई..और आयी उसके अभिनय का उच्चतम आविष्कार दर्शानेवाली 'उमराव जान' (१९८१)..मिर्ज़ा अदी रुस्वा की उर्दू कादंबरी 'उमराव जान अदा' पर आधारित इस फ़िल्म का निर्देशन मुज़फ्फर अली ने किया था..लखनऊ की कोठेवाली का शोहरत तक पहुँचने का सफर और दर्द बयां करनेवाले इस किरदार में रेखा ने अपना सबकुछ लगाया था! "जुस्तजू जिसकी थी.." ऐसे शहरयार ने लिखे इसके गीत ख़ैयाम की धुनों में आशा भोसले ने गाए..और "इन आँखों की मस्ती के.." जैसे मुज़रे में कमाल के मुद्राभिनय से रेखा ने पेश किए।..उसको 'सर्वोत्कृष्ट अभिनेत्री' का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला!
'उमराव जान' (१९८१) में रेखा!

इसके बाद शशी कपूर निर्मित तीन फिल्मों में रेखा ने स्त्री व्यक्तित्व के अलग पहलूं दिखाएं..इसमें पहली थी श्याम बेनेगल निर्देशित आज के पैसों के पीछे पड़े औद्योगिक युग में महाभारत दर्शानेवाली 'कलयुग', दूसरी गोविन्द निहलानी निर्देशित हवाई प्रशिक्षण और पारीवारिक संबंधों पर 'विजेता' (१९८१).  इसके बाद कलात्मक तीसरी फिल्म थी गिरीश कर्नाड निर्देशित 'उत्सव' (१९८४) जो संस्कृत नाटिका 'मृच्छकटिका' पर आधारित थी और रेखा ने इसमें वसंतसेना की भूमिका बख़ूबी अदा की थी! "मन क्यूँ बहेका रे.." जैसे इसके गानों में उसका मुद्राभिनय लाजवाब था।
'उत्सव' (१९८४) में रेखा!

दरमियान उसनें १९८२ में एक तरफ घर की जिम्मेदारी की वजह से शादी न कर पानेवाली स्त्री फिल्म 'जीवनधारा' में; तो दूसरी तरफ एच.एस.रवैल की फिल्म 'दीदार-ए-यार' में फिर से कोठे पर नज़ाकत पेश करनेवाली ऐसे किरदार निभाए! फिर १९८३ में गुरुदत्तजी के बेटे तरुण दत्त की फिल्म 'बिंदिया चमकेगी' में अलहड़ भूमिका में वह नज़र आयी!
'जीवनधारा' (१९८२) में रेखा!



मुख्य धारा के सिनेमा में रहकर सशक्त स्त्री भूमिका निभाना रेखा ने शुरू किया था..इसमें १९८८ में ऑस्ट्रेलियाई सीरियल 'रिटर्न टू ईडन' (१९८३) पर राकेश रोशन ने बनाई फिल्म 'खून भरी मांग' (१९८८) में उसने अत्याचार का बदला लेनेवाली अमीर बेवा जोरोशोर से साकार की! इसके लिए उसको 'फ़िल्मफ़ेअर' का पुरस्कार मिला। बाद में राजकुमार संतोषी ने सत्यघटना पर बनाई फिल्म 'लज्जा' (२००१) में भी उसका किरदार इसी तरह का था!
 'खून भरी मांग' (१९८८) में रेखा!

दरमियान उसके कुछ कंट्रोवर्सिअल रोल्स भी काफी चर्चित रहें..इसमें थी मीरा नायर की इंग्लिश फिल्म 'कामसूत्र: ए टेल ऑफ़ लव' (१९९६) जिसमें उसने यह पढानेवाली की भूमिका निभायी थी!..और दूसरी थी बासु भट्टाचार्य की आखरी फिल्म 'आस्था' (१९९७) जिसमे उसने बोल्ड विवाहीता साकार की..और साथ में था पहेला नायक नविन निश्चल!

वैसे बढ़ती उम्र का असर रेखा पर कभी दिखाई नहीं दिया; क्योंकी योगा से अपनी सेहत का पूरा खयाल वह रखती आयी है! इसी लिए प्रदीप सरकार की नई 'परिणीता' (२००५) में जब उसने "कैसी पहेली ज़िंदगानी.." गाकर क्लब में डांस किया तो सबको ताज्जुब हुआ!..और आखरी की हुई फिल्म 'सुपर नानी' में भी उसका मॉडल का अंदाज़ चौकाने वाला था!

'भारतीय सिनेमा की ग्रेटा गार्बो' कहेलाने वाली रेखा का व्यक्तिगत जीवन शुरू से संघर्षमय तो रहा ही..और प्यार-शादी को लेकर कॉन्ट्रवर्सीयल भी रहा! अपने पचास साल के फिल्म कैरियर में उसने अब तक कुल १८० फिल्मों में काम किया और लोकप्रिय सिनेमा की एक चोटी की अभिनेत्री रही है!

भारत सरकार से 'पद्मश्री' से सम्मानित होती हुई रेखाजी!
रेखाजी को अनेक अवार्ड्स मिले..जिसमें 'फ़िल्मफ़ेअर', 'स्क्रीन' से 'राष्ट्रीय पुरस्कार' शामिल है।..२०१० में उन्हें भारत  सरकार की तरफ से 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया और २०१२ से वह राज्यसभा की सदस्या भी रही है! सिंगापुर में हुए 'आईफा अवार्ड्स' में उन्हें 'आउटस्टैंडिंग कॉन्ट्रिब्यूशन टू इंडियन सिनेमा' के लिए 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से नवाजा गया!

बम्बई में १९९५ में सिनेमा के १०० साल का सेलिब्रेशन करनेवाले 'सिनेमा सिनेमा' प्रोग्राम के दरमियान और बाद में भी कार्यक्रमों में रेखाजी से मिलना याद आ रहा है!

ऐसी हमारी फेवरेट 'ख़ूबसूरत' अभिनेत्री को मेरी शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी
 ('चित्रसृष्टी' पुणे)