Friday 13 October 2017

भारतीय सिनेमा की ग्रेटा गार्बो..'ख़ूबसूरत' रेखा! 

- मनोज कुलकर्णी



साठ साल से ज्यादा उम्र और फिल्म इंडस्ट्री में पचास साल का लम्बा सफर पार करने के बाद भी..जवाँ ख़ूबसूरत दिखनेवाली हमारे भारतीय सिनेमा की लाज़वाब अभिनेत्री है रेखाजी!

गुजरे ज़माने के तमिल अभिनेता जेमिनी गणेशन और तेलुगु अभिनेत्री पुष्पवल्ली की कन्या रेखा का असली नाम था..भानुरेखा! पिता का दूर रहेना और हालातों की वजह से उसने सिर्फ १२ साल की उम्र में स्कूल छोड़ कर सिनेमा की तरफ रुख कर लिया। पहली बार १९६६ में तेलुगु फिल्म 'रंगुला रत्नम' में वह बालकलाकार के रूप में परदे पर दिखाई दी!

तेलुगु फिल्म 'रंगुला रत्नम' (१९६६) में बालकलाकार ..और षोडश रेखा!


इसके बाद १९६९ में बतौर नायिका वह आयी हिट कन्नड़ा फ़िल्म 'ऑपरेशन जैकपॉट नल्ली सी.आय.डी. ९९९' में..जिसके नायक थे वहां के सुपरस्टार राजकुमार!
कन्नड़ा 'ऑपरेशन जैकपॉट नल्ली सी.आय.डी. ९९९' (१९६९) में रेखा और राजकुमार!



इसी दौरान उसने हिंदी फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा 'अंजाना सफर' से..इसमें नायक बिश्वजीत के साथ उसका फ़र्जी चुंबन दृश्य से कंट्रोवर्सी खड़ी हुई..और दस साल के बाद १९७९ में 'दो शिकारी' नाम से यह फ़िल्म प्रदर्शित हो गई!
हिंदी 'अंजाना सफर' ('दो शिकारी'/१९७९) में बिश्वजीत और रेखा!





यहाँ शुरुआत के दिनों में उसको हिंदी भाषा बोलने जैसी समस्यांओ से गुजरना पड़ा..गोल मटोल टोमबोइश थी वह! सही माने में उसका हिंदी सिनेमा में डेब्यू हुआ मोहन सैगल की फ़िल्म 'सावन भादो' (१९७०) से..इसके नायक नविन निश्चल का उसके साथ "सुन सुन सुन ओ गुलाबी कली.." इस रफ़ीजी के गाए रूमानी गाने से इश्क़ लड़ाना दर्शकों को भा गया..और इस हिट फ़िल्म से रेखा स्टार हो गई!
'सावन भादो' (१९७०) में नविन निश्चल और रेखा!


फिर भी एक अभिनेत्री के लिए जैसे चाहिए वैसे क़िरदार उसके पास तुरंत नहीं आए।..रणधीर कपूर के साथ 'रामपुर का लक्ष्मण', धर्मेंद्र के साथ 'कहानी किस्मत की' (१९७२) और सुनिल दत्त के साथ 'प्राण जाए पर वचन ना जाए' (१९७४) और फ़िरोज़ खान के साथ 'धर्मात्मा' (१९७५) ऐसी नायकों के इर्द-गिर्द घूमनेवाली फिल्मों में उसका अस्तित्व सिर्फ़ 'लुक' था!

  'दो अंजाने' (१९७६) में अमिताभ बच्चन और रेखा!
बाद में रेखा ने अपनी सेहत, अपीयरेंस और अभिनय पर गंभीरता से ध्यान देना शुरू किया। इस दौरान उनके सामने आया तब सुपरस्टार बनके छा गया अमिताभ बच्चन जिसके साथ उसको 'दो अंजाने' (१९७६) फ़िल्म में लिया गया..निहार रंजन गुप्ता की बांग्ला उपन्यास 'रात्रिर यात्री' पर आधारित दुलाल गुहा ने बनाई इस फिल्म में ग्लैमर की चकाचौंध दुनिया का रंग चढ़ गयी हीरोइन का वह मुश्किल किरदार उसने बख़ूबी पेश किया! इसी के साथ शुरू हुआ अमिताभ और रेखा इस हिट जोड़ी का 'सिलसिला'!

'माँग भरो सजाना' में रेखा और जितेंद्र!

फिर 'सावन भादो' में ग्लैमर से मशहूर करनेवाले मोहन सैगल ने ही उसे 'एक ही रास्ता' (१९७७) में अभिनय से परिपूर्ण स्त्री व्यक्ति'रेखा' में लाया..सामने शबाना आज़मी जैसी मंजी हुई अभिनेत्री थी और नायक था जितेंद्र जिसके साथ उसने बाद में कई अच्छी पारिवारिक फ़िल्में की...जैसी 'माँग भरो सजाना', 'जुदाई' (१९७९) और 'एक ही भूल' (१९८१).

'घर' (१९७८) में रेखा और विनोद मेहरा!

दरमियान उसने एक अच्छी सोशल फिल्म में काम किया 'घर' (१९७८)..नायक था विनोद मेहरा जिसके साथ वह काफी क्लोज हुई थी!..इसके गुलज़ार के "आज कल पाँव ज़मीन पर नहीं पड़ते मेरे.." गाने में दोनों की नजदीकियाँ नज़र आयी!

'खून पसीना' (१९७७) में अमिताभ बच्चन और रेखा!




लेकिन अमिताभ बच्चन-रेखा यही जोड़ी परदे पर हिट हुई और बहोत चर्चित भी रही! इसमें हृषिकेश मुख़र्जी की फिल्म 'आलाप' (१९७७) में इनके तरल भावनिक आविष्कार काफ़ी इंटेंस रहें! फिर 'खून पसीना' से अमिताभ के साथ का असर रेखा के स्टाईल में भी दिखाई देने लगा..बाद में 'ईमान धरम' और 'गंगा की सौगंध' (१९७८) इस भोजपुरी फिल्म से यह जोड़ी आम जनमानस पर छा गई!


'मुकद्दर का सिकंदर' (१९७८) में रेखा और अमिताभ बच्चन!
..और आयी प्रकाश महरा की हिट फिल्म 'मुकद्दर का सिकंदर' जिसमे अमिताभ का किरदार जीवन में प्रतिकुल परिस्थिती से संघर्ष करके अन्याय विरुद्ध खड़ा रहनेवाला ऐसा ही था; लेकिन दो नायिकाओं का अलग स्थिती में साथ निभानेवाला (कुछ 'देवदास' की तरह ही) भी था..जिसमें कोठे पर "सलाम-ए-इश्क़.." गाकर इस सिकंदर पर जान निछावर करनेवाली जोहरा बनी रेखा की अदा लाज़वाब थी।..उन दोनों का ऐसाही अंदाज बाद में 'सुहाग' (१९७९) में भी दिखाई दिया। इस जोड़ी की लोकप्रियता इस कदर बढ़ी की 'मि. नटवरलाल' के गाने में रेखा ने कहाँ "परदेसियां ये सच है पिया सब कहेते है मैंने तुझको दिल दे दिया.." और उस पर अमिताभ ने कहाँ "लोगों को कहेने दो कहेते ही रहेने दो.."
'मि. नटवरलाल' (१९७९) के "परदेसियां.." गाने में रेखा और अमिताभ बच्चन!
१९८० में आयी फिल्म 'राम बलराम' के बाद..अमिताभ और रेखा की बढ़ती नजदिकियों के मद्देनज़र मशहूर फ़िल्मकार यश चोपड़ा ने उनको परदेपर सीधा जया भादुड़ी-बच्चन के सामने लाने का मुश्किल काम किया फिल्म 'सिलसिला' (१९८१) से! इसमें इन तीनों के भावोत्कट प्रसंग दर्शकों ने वास्तविकता के संदर्भ में देखे। इसके "ये कहाँ आ गए हम.." गाने में दोनों का रोमांटिसिज्म कमाल का था!
'सिलसिला' (१९८१) में रेखा, अमिताभ बच्चन और जया भादुड़ी-बच्चन!

दरमियान रेखा ने ऐसी कॉन्ट्रवर्सी से हटकर अपने एक्टिंग कैरियर पर ध्यान देना बेहतर समझा। इसका नतीजा हृषिकेश मुख़र्जी की फिल्म 'ख़ूबसूरत' (१९८०) में सामने आया था..इसमें "सुन सुन सुन दीदी.." गाकर स्कर्ट में डान्स करनेवाली नटखट और बिनधास्त रेखा ने बंधनों को तोड़ कर खुशी से जीने का सबक दिया!..उसका यह अंदाज़ स्कुल-कॉलेज के दिनों में बहोत प्यारा लगा था और वह हमारी फेवरेट हुई। इस फिल्म के लिए उसको 'फ़िल्मफ़ेअर' का 'बेस्ट एक्ट्रेस अवार्ड' भी मिला!
'ख़ूबसूरत' (१९८०) में रेखा!

फिर 'एग्रीमेंट' जैसी अलग फ़िल्में करते हुए उसने 'काली घटा' में दोहरी भूमिकाएं निभाई..और आयी उसके अभिनय का उच्चतम आविष्कार दर्शानेवाली 'उमराव जान' (१९८१)..मिर्ज़ा अदी रुस्वा की उर्दू कादंबरी 'उमराव जान अदा' पर आधारित इस फ़िल्म का निर्देशन मुज़फ्फर अली ने किया था..लखनऊ की कोठेवाली का शोहरत तक पहुँचने का सफर और दर्द बयां करनेवाले इस किरदार में रेखा ने अपना सबकुछ लगाया था! "जुस्तजू जिसकी थी.." ऐसे शहरयार ने लिखे इसके गीत ख़ैयाम की धुनों में आशा भोसले ने गाए..और "इन आँखों की मस्ती के.." जैसे मुज़रे में कमाल के मुद्राभिनय से रेखा ने पेश किए।..उसको 'सर्वोत्कृष्ट अभिनेत्री' का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला!
'उमराव जान' (१९८१) में रेखा!

इसके बाद शशी कपूर निर्मित तीन फिल्मों में रेखा ने स्त्री व्यक्तित्व के अलग पहलूं दिखाएं..इसमें पहली थी श्याम बेनेगल निर्देशित आज के पैसों के पीछे पड़े औद्योगिक युग में महाभारत दर्शानेवाली 'कलयुग', दूसरी गोविन्द निहलानी निर्देशित हवाई प्रशिक्षण और पारीवारिक संबंधों पर 'विजेता' (१९८१).  इसके बाद कलात्मक तीसरी फिल्म थी गिरीश कर्नाड निर्देशित 'उत्सव' (१९८४) जो संस्कृत नाटिका 'मृच्छकटिका' पर आधारित थी और रेखा ने इसमें वसंतसेना की भूमिका बख़ूबी अदा की थी! "मन क्यूँ बहेका रे.." जैसे इसके गानों में उसका मुद्राभिनय लाजवाब था।
'उत्सव' (१९८४) में रेखा!

दरमियान उसनें १९८२ में एक तरफ घर की जिम्मेदारी की वजह से शादी न कर पानेवाली स्त्री फिल्म 'जीवनधारा' में; तो दूसरी तरफ एच.एस.रवैल की फिल्म 'दीदार-ए-यार' में फिर से कोठे पर नज़ाकत पेश करनेवाली ऐसे किरदार निभाए! फिर १९८३ में गुरुदत्तजी के बेटे तरुण दत्त की फिल्म 'बिंदिया चमकेगी' में अलहड़ भूमिका में वह नज़र आयी!
'जीवनधारा' (१९८२) में रेखा!



मुख्य धारा के सिनेमा में रहकर सशक्त स्त्री भूमिका निभाना रेखा ने शुरू किया था..इसमें १९८८ में ऑस्ट्रेलियाई सीरियल 'रिटर्न टू ईडन' (१९८३) पर राकेश रोशन ने बनाई फिल्म 'खून भरी मांग' (१९८८) में उसने अत्याचार का बदला लेनेवाली अमीर बेवा जोरोशोर से साकार की! इसके लिए उसको 'फ़िल्मफ़ेअर' का पुरस्कार मिला। बाद में राजकुमार संतोषी ने सत्यघटना पर बनाई फिल्म 'लज्जा' (२००१) में भी उसका किरदार इसी तरह का था!
 'खून भरी मांग' (१९८८) में रेखा!

दरमियान उसके कुछ कंट्रोवर्सिअल रोल्स भी काफी चर्चित रहें..इसमें थी मीरा नायर की इंग्लिश फिल्म 'कामसूत्र: ए टेल ऑफ़ लव' (१९९६) जिसमें उसने यह पढानेवाली की भूमिका निभायी थी!..और दूसरी थी बासु भट्टाचार्य की आखरी फिल्म 'आस्था' (१९९७) जिसमे उसने बोल्ड विवाहीता साकार की..और साथ में था पहेला नायक नविन निश्चल!

वैसे बढ़ती उम्र का असर रेखा पर कभी दिखाई नहीं दिया; क्योंकी योगा से अपनी सेहत का पूरा खयाल वह रखती आयी है! इसी लिए प्रदीप सरकार की नई 'परिणीता' (२००५) में जब उसने "कैसी पहेली ज़िंदगानी.." गाकर क्लब में डांस किया तो सबको ताज्जुब हुआ!..और आखरी की हुई फिल्म 'सुपर नानी' में भी उसका मॉडल का अंदाज़ चौकाने वाला था!

'भारतीय सिनेमा की ग्रेटा गार्बो' कहेलाने वाली रेखा का व्यक्तिगत जीवन शुरू से संघर्षमय तो रहा ही..और प्यार-शादी को लेकर कॉन्ट्रवर्सीयल भी रहा! अपने पचास साल के फिल्म कैरियर में उसने अब तक कुल १८० फिल्मों में काम किया और लोकप्रिय सिनेमा की एक चोटी की अभिनेत्री रही है!

भारत सरकार से 'पद्मश्री' से सम्मानित होती हुई रेखाजी!
रेखाजी को अनेक अवार्ड्स मिले..जिसमें 'फ़िल्मफ़ेअर', 'स्क्रीन' से 'राष्ट्रीय पुरस्कार' शामिल है।..२०१० में उन्हें भारत  सरकार की तरफ से 'पद्मश्री' से सम्मानित किया गया और २०१२ से वह राज्यसभा की सदस्या भी रही है! सिंगापुर में हुए 'आईफा अवार्ड्स' में उन्हें 'आउटस्टैंडिंग कॉन्ट्रिब्यूशन टू इंडियन सिनेमा' के लिए 'लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड' से नवाजा गया!

बम्बई में १९९५ में सिनेमा के १०० साल का सेलिब्रेशन करनेवाले 'सिनेमा सिनेमा' प्रोग्राम के दरमियान और बाद में भी कार्यक्रमों में रेखाजी से मिलना याद आ रहा है!

ऐसी हमारी फेवरेट 'ख़ूबसूरत' अभिनेत्री को मेरी शुभकामनाएं!!

- मनोज कुलकर्णी
 ('चित्रसृष्टी' पुणे)

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