शायर जां निसार अख्तर साहब! |
"अशआर मेरे यूँ तो ज़माने के लिए हैं..
कुछ शेर फकत उनको सुनानेके लिए हैं
अब ये भी नहीं ठीक के हर दर्द मिटा दे
कुछ दर्द कलेजे से लगाने के लिए हैं.."
ऐसा रुमानी लिखनेवाले शायर जां निसार अख्तर साहब का आज १०४ वा जनमदिन!
मशहूर पटकथा-संवाद लेखक तथा शायर जावेद अख्तरजी के पिताजी और लेखक, अभिनेता-निर्देशक फरहान अख्तर के दादाजी..जां निसार अख्तरजी उर्दू गझल और नज्म के लिए जाने जाते है!
"आँखो ही आँखो में.." ('सी.आय.डी.'/१९५६) में देव आनंद और शकीला! |
'रझिया सुलतान' (१९८३) में हेमा मालिनी! |
"आँखो ही आँखो में इशारा हो गया.." ('सी.आय.डी.'/१९५६)
"ये दिल और उनकी निगाहों के साये.." ('प्रेम पर्बत/'१९७४)
और कमाल अमरोही की 'रझिया सुलतान' (१९८३) के लिए उन्होंने लिखा हुआ आखरी..
"ऐ दिल-ए-नादान..आरज़ू क्या है..जुस्तजू क्या है.."
उनको यह आदरांजली!!
- मनोज कुलकर्णी
['चित्रसृष्टी', पुणे]
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